व्यर्थ जीवन गया, क्या दुनियाँ को दिया?
क्यों जन्मा था ? क्यों रहे याद हमारी?
शहादत न सही, कुछ करता हितकारी
युगों तक ‘जय’ करती, ये दुनियाँ सारी।
हजरत मुझे थी, वतन के काम आऊँ
कुटुम्ब तक सिमट गई हजरतें सारी
मै सोचता ही रहा, तुम मिट भी गये
न दगा दे दुआ कर , किसी की जवानी।
रहेगा मौत मे फर्क इतना हमारे
मैं भूला’सफा’ सा, तुम अमर कहानी
तुम नायक वतन के, शान-ए-वतन हो
मेरी न जवानी, ना निशानी होगी।
यहाँ तुम भी न रहे, कल मैं भी न रहूँगा
ये समारक जवाँ रखेगा कुर्बानी
झुकते हैं अदब से कृत्ज्ञ देशवासी
वतन है अमर,वीरगति से तुम्हारी।
भूलेंगे मेरी मौत ,जो है अपने
पूजनिय रहेगी वीरगति तुम्हारी
तुम लिखा गये यहाँ कुर्बानी जैसी
तुम सा मरूँ मैं, नही किस्मत हमारी।
जो मरते वतन पर ,जीवित है मन में
सदा याद कर हों ,नम आँखे हमारी
लहू से सींच कर ये. गुलशन सजाया
हक अदा कर गये अब हमारी बारी हमारी।
जिस धरती पर गिरे, वही तीर्थ सबका
अब गीत गूँजते याद मे तुम्हारी
कभी तो यहाँ मौत सबको है आनी
वतन तू लहू ले,क्या करूँगा जवानी।