संगीन थामे तुम सीना चौडा कर
गर्जते-शेर की मानिंद चलते हो
दुश्मन देखे, उसे कम्पन हो जाती
हमवतनों का हौंसला बढता है।
कभी पल्ख झपकी कि मौत हो सम्मुख
सदा सजग तुम्हें रहना पडता है
हम सुख निंद्रा लें या स्वछंद उडे तब
क्यों कि ,हर “वार” तुम्ही ने झेला है।
वर्षा धुप ,न भूख -प्यास डिगाती
फिर हालात हों कुछ,सब निबटता है
कुटुम्ब से दूर, तुम हिम्मत से चूर
तेरे ज़ज्बे से शत्रु दहलता है।
बन हो पर्वत ,दिखे शौर्य तुम्हारा
तुम पराक्रमी हो, विश्व समझता है
विकट हो संकट ,धरी आस तुम्ही पर
“कृत्ज्ञ राष्ट्र” – सदा भरोसा करता है।
रौंधे पथ दुर्गम – रौंधे हिमपर्वत
है सैनिक, तू किस माँ का बेटा है?
तन पर हक तो वाशिंदों को दे दिया
“प्राण पर हक” कहा भारत माँ का है।
तन हो लथपथ, पर तिरंगा उठाते
दुर्गम पर “विजय ध्वज” लहराते हो
ऐसे पराक्रमी को नमन हमारा
जो मिट कर, सिर ऊँचा कर जाते हैं।