यहॉ वोट की राजनीति है ऐसी
हाथ जोड, फिर कर एेसी की तैसी
तू शब्द जाल से मस्तक बुन सबका
फिर पल्टी खा,झुठे वादों पर ‘जी’
शब्द ‘तोड मरोड’ दिये कहकर मुकर
मौके की नजाकत देखना जैसी ।
यहॉ बोट की राजनीति है ऐसी
समझ इसे ,बात कहूँ सीधी सच्ची ।
हाथ जोडकर गलियों मे घुसता जा
शिशु डर कर उठ जाये,यूँ ढोल बजा
लल्लुओं से मिल,मत छोटा कर ‘जी’
बस्तियों मे घुसकर जरा पानी ‘पी’
फिर पाँच वर्ष इसे क्यूँ मिलना है
मन मार के मुस्कुरा, ये गुस्सा ‘पी’।
यहाँ वोट की राजनीति है एेसी
समझ इसे,बात कहूँ सीधी सच्ची।
भाडे कि भीड़ लिये ‘जय’ बुलवान
माला हो खुद की, उनसे डलवाना
बताना तुम हो उनकी तकदीर
फिर विपक्ष की बुराई करो’दस- बीस’
आरोप धरना,सुर्खियों मे रहना
‘शब्द लौटा’, करके बेज्जती उनकी ।
यहॉ वोट की राजनीति है एेसी
समझ इसे, बात कहूँ सीधी सच्ची।
हो चुनाव का मौसम , गले लगाना
जो वोट चाहो, सपने भी दिखाना
चुनाव तक दिखना,फिर गुम हो जाना
किया कुर्सी पर खर्चा,जल्दी खींच
है ‘थाली की बैंगन’ जन्ता सन्की
उसे फुसला,फिर बाँट कम्बल जर्सी ।
यहाँ वोट की राजनीति है ऐसी
समझ इसे,बात कहूँ सीधी सच्ची ।
तू भले लाख का पेेेेट्रोल जलाना
जला लाख की बिजली, उसे छिपाना
या मिटिंग कर लाखों रूपये उडाना
पर जिसे, रूपये तीस मिलें बता अमीर
भरता पेट-दस रूपये मे समझाना
ये नीति झूठ पर ही फलती-चलती ।
यहॉ बोट की राजनीति है ऐसी
समझ इसे, बात कहूँ सीधी-सच्ची।
जन्ता हो भ्रमित,खूब ढौंग रचाना
क्या पक्ष-विपक्ष , जो दे टिकट घुस जाना
तू स्वार्थ छिपाकर भक्ती जतलाना
फिर ‘विपक्षी चाल’ , कह दोष छिपाना
मृत्यु पर ‘बडी क्षति’ सा मुँह बनाना
बनना नेता, जब हो फितरत ऐसी ।
यहाँ वोट की राजनीति है ऐसी
समझ इसे, बात कहूँ सीधी-सच्ची।
क्या फिर नेता होंगे सेवक जैसे ?
शायद हों , पर जो बनते पंसारी
कैसे मिले वोट,तुझको छलते है
दोषी जनता,जो बेसुध बिकती है
दुर्भाग्य तो जनता खुद लिखती है
वोट बनाता है देश की तस्वीर।
यहाँ वोट की राजनीति ऐसी
समझ इसे, बात कहूँ सीधी सच्ची।