हार जीत किस्सा जीवन का
प्यार कभी धुत्कार मिला है,
चढ़ते रवि को नमन करें सब
दुःख में अपना दूर खड़ा है।
सशक्त बन – बैशाखी मत ले
खुद मर के ही स्वर्ग दिखता हैं,
अपना हाथ जगन्नाथ समझ
पथ प्रस्थ हौंसला करता है।
‘दुःख’ सुन सब हँसते, कुछ कटते
रंग में भंग उनको दिखता है,
नर्वस मत दिख – मिल उत्साहित
‘मान’ तभी सुरक्षित चलता है।
चटक रहो तो घमंड कहते
नम्र को कहें – मरीज़ बना है,
काम यही बस – बुरा कहें क्या
‘कटु’ को लगता कौन भला है ?
शिखर छू – रहें पाँव धरा पर
हमने पंख कटते देखा है,
नाम कमा वो, नमन करे युग
बदनाम चार दिन ही टिकता है।
मीठा ‘हप’ – कड़वा ‘थू’ करना
विचार सबसे कब मिलता है,
दुआ लो सबकी – तर्क हल नहीं
ना समझों ने मुल्क डंसा है।
धरती पर ‘थू’ या ‘लघुशंका’
माँ है धरती – शर्म कहाँ है ?
‘शौच’ खुले में हँसे विदेशी
इक मछली से जल सड़ता है।
‘यश – अपयश’ हाथों में तेरे
‘जल’ मनचाहा रंग चढ़ता है,
‘इकजन’ होता स्वयं कारवां
शर्त उसे दिनकर बनना है।
जैसी हिफाज़त ‘तन’ माँगता
‘मैला मन’ रोगी लगता है,
‘सोच’ बनाती भला – बुरा नर
‘सोच’ तेरा क्या फलसफा है ?