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एक स्टार्टअप वेंचर कैसे निर्धारित करता है कि आगे बढ़ने के लिए कितनी पूंजी कि जरुरत है ?


स्टार्टअप अपना बिज़नेस शुरू करने के लिए सभी कानूनी औपचारिकता पूरी कर लेता है। इस स्टेज में कंपनी के प्रोमोटर शुरुआत में इतना पैसा लगाते है कि कंपनी अपने पैरों पर खड़ी हो जाए या अपना संचालन शुरू कर सके। क्योंकि इस स्टेज में कंपनी के प्रोडक्ट या सर्विसेज़ की बिक्री बहुत कम होती है और कंपनी के आय स्रोत भी कम होते हैं, इसीलिए लॉन्च स्टेज को अक्सर कई लोग सबसे जोखिम-भरा चरण मानते है। एक स्टार्टअप जब अपना बिज़नेस शुरू करता है तब अपना बिज़नेस का दायरा देखता है ,कि उसका बिज़नेस कितना बड़ा है । जितना बड़ा बिज़नेस होगा उतनी ही उसमें पूंजी कि अवश्यक्ता होगी ।

जब कोई बिज़नेस अपने जोखिम-भरे लॉन्च स्टेज को पार कर लेता है, तो ऐसा माना जाता है कि उसने अपने ग्रोथ स्टेज यानी विकास के चरण में एंट्री ले ली है। इस स्टेज में बिज़नेस की सर्विसेज़ या प्रोडक्ट्स की बिक्री शुरू होती है और कंपनी की मार्केट में अपनी खुद की पहचान, प्रतिष्ठा और विश्वसनीयता बनने लगती है। और जैसे ही कंपनी की बिक्री बढ़ती है, कंपनी के पास एक स्थिर आय भी आने लग जाती है और इसके साथ ही बिक्री और उसका भुगतान मिलने के बीच का समय भी कम होता जाता है। बिक्री और राजस्व में हुए विकास की वजह से बिज़नेस को फायदा होने लगता है ।

आपकी सोच से उलट, ऐसे कई तरीके हैं जिससे कोई व्यवसाय अपने लिए पूँजी जुटा सकते हैं। यहाँ तक कि कुछ बिज़नेस अपनी पूँजहजुटाने के लिए क्राउडफंडिंग का तरीका भी अपनाते हैं। पर यह फंडिंग-ऑप्शन अभी भी अपनी शुरुआती अवस्था में है और इस पर भरोसा करना सिर्फ तुक्का लगाने जैसा ही होता है।

लोन के ज़रिये अपने बिज़नेस की पूँजी जुटाना अभी भी फंडिंग के सबसे लोकप्रिय तरीकों में से एक है। ज़्यादातर छोटे व्यवसाय और स्टार्टअप्स, लोन से अपने बिज़नेस की फंडिंग के लिए बैंकों और अन्य दूसरे वित्तीय संस्थानों की मदद लेते हैं।

भारत में लगभग सभी बैंक बिज़नेस के लिए कई तरह के विकल्प और शर्तों वाले बिज़नेस लोन देते हैं। कुछ बैंक तो बिना ज़मानत (सिक्योरिटी) के भी लोन दे देते हैं। और कभी-कभी बैंक बिज़नेस को लोन देने के लिए मना भी कर देते हैं। इसके कई कारण हो सकते हैं, जैसे, बिज़नेस की क्रेडिट रेटिंग कम होना या बिज़नेस का बैंक की शर्तों और ज़रूरतों को पूरा ना करना। ऐसी स्थिति में, माइक्रोफाइनेंस प्रोवाइडर और गैर-बैंकिंग वित्तीय निगम (नॉन-बैंकिंग फाइनेंशियल कॉरपोरेशन/ NBFC) आपके काम आ सकते हैं, क्योंकि बिज़नेस को लोन देने की उनकी आवश्यकताएं और शर्तें आमतौर पर बैंक की तरह कठोर नहीं होती हैं।


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