किसी भी देश में आर्थिक विकास की गति को बढ़ावा देने तथा व्यावसायिक समस्याओं का समाधान करने में उद्यमी की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण हो गई है। वास्तव में उद्यमिता आर्थिक एक सामाजिक परिवर्तनों की प्रक्रिया है।
नवप्रवर्तन की समस्या – आज विश्व के लगभग सभी देश एक वैश्विक ग्राम की तरह हो गये हैं। इनमें वे कुछ देश जो पूँजी, तकनीक एवं नये आविष्कारों के मामले में सबसे आगे हैं जिन्हें विकसित देश कहा जाता है, अपने उत्पाद की नई श्रृंखला तुरन्त बाजार में ले आते हैं, लेकिन अल्पविकसित देश का उद्यमी इन उत्पादों की प्रतियोगिता के सामने ठहर ही नहीं पाता क्योंकि उसके पास नवीनतम तकनीक नहीं है व नवप्रवर्तन उसकी फितरत भी नहीं होती।
जोखिम प्रबन्धन की समस्या – उद्यमी जोखिमों की प्रकृति एवं गम्भीरता के आधार पर जोखिम प्रबन्ध की उचित तकनीक का प्रबन्ध करता है। कई जोखिमों को उचित जागरुकता द्वारा रोका या टाला जा सकता है, कई जोखिमों का हस्तांतरण व बीमा करवाया जा सकता है। हमारे यहाँ अधिकांश उद्यम प्रकृति द्वारा प्रदत्त सामग्री अर्थात् कृषि एवं वनोपज पर निर्भर है तथा इन प्राकृतिक आपदाओं (अतिवृष्टि या अनावृष्टि) की जोखिम से बचना लगभग नामुमकिन होता है।
सूचनाओं के संग्रहण की समस्या – नवप्रवर्तन हमारे उद्यमी की पहली समस्या है एवं उसी से सम्बन्धित है यह समस्या। नवप्रवर्तन की प्रक्रिया के लिए नये तथ्यों, आँकड़ों व सूचनाओं का होना आवश्यक होता है। हमारा मौसम विभाग यदि भारी वर्षा की चेतावनी दे दे तो अगले पूरे सप्ताह तेज धूप निकलती है। हमारे यहाँ बाहर देशों के कितने लोग आकर अपना काम बनां जाते हैं। हमें दूसरे विकसित देशों से इसकी जानकारी मिलती है। इन सबका प्रभाव उद्यमी के कार्यों पर भी पड़ता है।
नियोजित विस्तार की समस्या – उद्यमी को बाजार की माँग व सम्भावित लाभों की स्थिति को देखते हुए अपेन व्यवसाय का विस्तार भी करना होता है। किन्तु अनियोजित विस्तार न केवल संसाधनों के दुरुपयोग को बढ़ाता है, वरन् कई वित्तीय एवं प्रबन्धकीय समस्याओं को भी खड़ा कर देता है। अत: उद्यमिता की एक महत्वपूर्ण समस्या सम्भावित बिक्री, लागतों, प्रबन्ध कौशल, संगठनात्मक ढाँचे आदि का विवेकपूर्ण विश्लेषण करना ।
समय प्रबन्ध की समस्या – उद्यमी को अपनी सम्पूर्ण क्रियाओं को नियोजित ढंग से चलाना आवश्यक होता है। समय पर माल को बाजार में लाना, समय पर उत्पादन करना, ग्राहकों को सही समय पर सुपुर्दगी देना तथा समस्त प्रबन्ध क्रियाओं को उचित समय पर निष्पादित करना आवश्यक होता है। अतः विभिन्न क्रिया-कलापों के लिए समय का उचित विभाजन अत्यन्त आवश्यक होता है। हमारे उद्यमी समय की कीमत पहचानकर उचित प्रबन्धन करने में प्रायः अक्षम साबित होते हैं
उचित प्रशिक्षण की समस्या – आज के जटिल तकनीकी वातावरण में उद्यमी को व्यवसाय के अनेक पहलुओं से परिचित होना आवश्यक होता है। उसे व्यवसाय के प्रबन्धकीय, संगठनात्मक, संचालकीय, वित्तीय, तकनीकी व अन्य दूसरे पहलुओं का ज्ञान प्राप्त करना जरूरी होता है। इसके अतिरिक्त, वर्तमान परिवर्तनशील वातावरण में नवीनतम जानकारी का उचित प्रशिक्षण लिये बिना कोई भी उद्यमी अपनी संस्था को सफलता नहीं दिलवा सकता है। हमारे यहां बिना प्रशिक्षण के ही उद्यमी लक्ष्य प्राप्ति के प्रयास करते रहते हैं।
बहुउद्देश्यों की सन्तुष्टि की समस्या – उद्यम एक बहुउद्देशीय संस्था है। इसमें अनेक वर्गों के लक्ष्यों की पूर्ति करनी होती है। उद्यमी को केवल संस्था के हितों का ही ध्यान नहीं रखना होता है, वरन् उसे व्यवसाय से जुड़े हुए विभिन्न वर्गों, जैसे-उपभोक्ताओं, कर्मचारियों, पूर्तिकर्ताओं, स्थानीय समुदाय, सरकार, स्वैच्छिक संगठनों, समाजिक संस्थाओं आदि के लक्ष्यों की पूर्ति पर भी ध्यान देना होता है।
वित्तीय दूरदर्शिता की समस्या – हमारे उद्यमी में वित्तीय दूरदर्शिता नहीं होती है। कई छ उद्यमी तो वितीय संस्थाओं या सरकार से धन प्राप्त करके इससे अपनी लड़की की शादी या पिता का मृत्युकर्म कर देते हैं। विवेकशील वित्तीय योजना एवं नीतियों के अभाव में उद्यम का अस्तित्व गम्भीर खतरे में पड़ सकता है। रोकड़ प्रवाह विश्लेषण, रोकड़ प्रबन्ध, आय व कार्यशील पूँजी के उचित प्रबन्ध पर पर्याप्त ध्यान दिया जाना चाहिये। नये उद्यमों को उचित वित्तीय पोषण की आवश्यकता होतो है। अत: समस्त वित्तीय मामलों में उद्यमी को वित्तीय दूरदर्शिता को अपनाना पड़ता है।