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“हिन्द की फौज” – Poetry

हम नम्र को नमन,मित्र को अर्पण
हिमालय जैसी भारतिय फौज है
आँच ना आये, हमवतन चैन लो
तिरंगे की सौं,प्रथम यह शीश है।

क्यों हिन्द ना रास आता उनको
क्यों कि, भू खण्डों पर नियत खास है
हम चमक रहे क्यों, ये खिज उनको
उकसा रहे द्वेष कई देश है।




हम मौज नही जो चाहे छेडे
हिन्द की फौज सभ्य है, श्रेष्ठ है
अरि उछले क्यों वैशाखी पर
बेहया,कुमति,द्वेष भी शेष है।

जो ‘ गीदड़ धमकी’ मिले शेर को
कुछ फर्क पडता नही विशेष है
संयम है , दुर्बल समझ उकसाता
शत्रू के बचे नही दिन शेष है।




हम परम्परागत रहे शान्ति प्रिय
दुष्टों पर ठोस बने,क्या दोष है?
बारुद थामे हम भी सजग हैं
किन्तु हो न पहल , अपनी सोच है।

जो लेने जाँ, करे सीमा पार
खुद वही शत्रू आोढते मौत है
फिर किया ड्रामा, “वो नही हमारा”
शत्रु बेनकाब तेरा देश है।




छलिया दिल, करे वार्ता की ललक
संग ही मिलती घात हर बार है
हो मजबूर या मानषिक बिमार
हमें बेशर्मों से परहेज है।

मुह की खाई , क्यों अकल न आई
रस्सी जली, ऐंठ तो शेष है
घर मे आग ,खुद लो उधार साँस
हताष की “अणु” धमकी विशेष है।




तुम झूठ भी सच कर मान समझे
स्वार्थियों संग खुश तेरा देश है
ना साजे तुम्हे प्यार हमारा
कुछ आँतकियो का भी संकेत है।

अच्छे-बुरे आँतक का भेद कर
भय को दिया टौनिक, फल शेष है
अच्छों संग मति-रति रही फौज की
ये सिद्ध करती विकलाँग सोच है।




हम चले जहाँ ,झुक गये पाषाण
वतन शपथ हमें, सीमाँ चौबंद है
हम शान्ति प्रिय,तभी करते है सब्र
ज्वालामुखी अब तक खामोश है।

नापाक कर्म कर बन रहे पाक
गन से अमन चाही अफशोस है
झूठ से प्रीत ,शान्ति से हो रीष
उनकी गुफा मे वही ‘शरीफ’ है।




वो खूब पिटे पर अदा निराली
विष उगलते , टेढी दुम शेष है
हम रहम करें , वो लहू बहाते
वो कैसे नक्ट्टों का देश हैं?

Bijender Singh Bhandari

Bijender Singh Bhandari, First Hindi Blogger on WEXT.in Community is retired Govt. Employee born in 1952. He is having a Great Intrest in Writing Hindi Poems.

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