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“नेक गय्या” – Poetry

इक दिन ‘बछिया’ बोली गय्या से
मय्या, हम जन्में क्या पाया है?
हम नर हितकारी सिंग से खुर तक
क्यों बध कर बनते निवाला हैं?

ये खग, पशु क्या जलचर खा जाते
नर असुर सोच दिल के काले हैं
क्यों पाल रहे भोली माँ समझो
संत नरों के स्वाँग निराले है।

ये दूध का हक चुरालें मेरा
नर पर उपकार नही चलता है
क्यों शान्त खडी तुम सह जाती हो
तुमको भी खा लेंगे, लगता है।

समय है मय्या कहीं भाग चलो अब
मुझे स्वछन्द वनों मे रहना है
क्यों पिचाश नर का ग्रास बने माँ
प्रेमाश्रय स्वार्थ तक रहता है।

माँ बोली-कैसे हित तज दूँ?
हम ‘भुजंग’ प्रवृति नही रखते हैं
वनचर भय ने नर के संग जोडा
नर स्नेह तो फिर भी करते हैं।

उचित है शंका मै सब जानूँ
पशु भक्षण कुछ नर ही करते है
पर शेष अभी हैं देव तुल्य भी
जो दुलार ‘माँ जैसा’ करते हैं।

हम नेक रहे , तब जग ‘माँ’ कहती
कुछ कर्म ‘कुल’ के संग चलते है
हमको तो क्या ,मरना है सबको
गौ वंश मे हिंसक नही जन्मे हैं।

यह क्रूर प्रवृति नर की नर जाने
पर हितकारी तो हित करते हैं
हिंसक को भी क्रूर मौत मिलेगी
‘विधी’ के विधान यही कहते हैं।

Bijender Singh Bhandari

Bijender Singh Bhandari, First Hindi Blogger on WEXT.in Community is retired Govt. Employee born in 1952. He is having a Great Intrest in Writing Hindi Poems.

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