कई पर्व हैं हिन्द में
हम रस लेते संग-संग
क्यों गर्भ न हों बाशिंदों
इस महक से जग है दंग।
होली की उमंग चढे
तुम संयम का दो दान
सदभावना बनी रहे
वो चाहे तब रंग डाल।
पर्व का अर्थ मेल है
मेल से स्नेह हो व्यक्त
स्नेह देश का हर्ष है
यह भाव हिन्द मे मस्त।
पिचकारी से यूँ भिगो
बसंती तन बन जाये
पग न बहके-मन महके
मिलन गदगद कर जाये।
शुद्ध भाव का रस मिले
उमंग मे ना हो ‘रार’
ठट्टा-मस्ती खूब चले
पर रखो अदब का ध्यान ।
जो तुम गले लगो कहीं
कुछ शेष न हो मन भेद
जन-जन को संदेश मिले
रंग कई-हिन्द है एक।
पर्व ढले तो क्या फर्क?
दिलों मे ना हो दूरी
पर्व आस्था दो जैसी
कल होगी मेरी बारी।
कटु भाव लिये होलिका
बैठी प्रहलाद के संग
भस्म होलिका अग्नि मे
वरदान हो गया व्यर्थ।
धर्म माने कर्म निभा
कर्म संग निभता फ़र्ज
बस इतनी चाह देश की
तू चुका देश का क़र्ज।
Jai hind…happy holi
Thanks Anupama