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मेरे कृषि प्रधान देश मे
अक्सर ऐसा क्यों होता है
कृषिक तो भूखा मरता है
सहुकार चैन से सोता है।

बीज बोये कुछ थे खोखले
क्यों कोई उसको छलता है
जो माटि ‘सिर’ धर है पूजता
वही सिर धरा-धर रोता है।

भर जायें खलिहान कभी जो
पूरा तो ‘साहु’ हडपता है
कृषक के कंटर बजते हैं
क्यों अन्न कहीं पर सडता है?

अन्न पेट भरता राजा का
क्यों रंक पेट को रोता है
वो कनक जिस बोरी ढोता है
क्यों उसी टाट पर सोता है?

घर जमीन गिरवी रखता है
जब कहो अंगुठा धरता है
भूख मिटाता भारत कि जो
वो क्यों रोटी को रोता है?

एक बार जब कर्ज उठाता
फिर जीवन भर वो ढोता है
कर्ज चुकाते लहु है रिसता
क्यों हल मृत्यू पर होता है?



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